परम पूज्य मुनि 108 श्री हितेन्द्र सागर जी महाराज
गुणस्थान:- मोह और योग के निमित से होने वाली जीव के दर्शन,ज्ञान,और चरित्र गुणों की अवस्था विशेष को गुणस्थान कहते हैं। गुणस्थान 14 होते है।
1. मिथ्यात्व 2. सासदन गुणस्थान 3.मिश्र या सम्यग्मिथ्यात्व 4. असंयत या अविरत सम्यक्त्व 5. देशसंयत या संयतासंयत या देश विरत 6.प्रमत या प्रमत विरत 7. अप्रमत्त या अप्रमत्त विरत 8. अपूर्वकरण 9. अनिवर्तीकरण 10. सूक्ष्मसाम्प्राय 11. उपशान्त मोह 12. क्षीणमोह 13. सयोगकेवली 14. अयोगकेवली
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1.मिथ्यात्व:- मोक्ष मार्ग के प्रयोजनभूत जीवादि सात तत्वों में यथार्थ श्रदान न होने को मिथ्यात्व कहते हैं।मिथ्यात्व में जीव देह को आत्मा मानता हैं तथा अन्य पर पदार्थो को भी अपना मानता हैं।कषाय परिणामो से भिन्न ज्ञान मात्र आत्मा का अनुभव नही कर सकता हैं।मिथ्या देवशास्त्र की प्रतीति करता हैं।
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