श्री महावीराय नमः
परम पूज्य मुनि श्री 108 हितेन्द्र सागर जी महाराज
1. मुझे वस्तु के अस्तित्व की श्रद्धा क्यों नहीं आती ? ऐसा स्वरूप को समझकर पकड़ ।
2. मेरा भगवान आत्मा मेरे पास सदैव विद्यमान है ।
3. जिन बिम्ब मेरा प्रतिबिम्ब हैं । जिन प्रतिमा जिन सारखी । मेरा ही द्रव्य अरिहन्त जैसा वीतरागी, परमात्मा जैसा है ।
4. भगवान मेरे समक्ष हैं, मुझमें ही हैं । सिर्फ मुझे अपना अन्तर्मुखी द्वार खोलना है ।
5. मैं सुख-शान्ति, आनंद, ज्ञान, पुरुषार्थ स्वरूप चैतन्य आत्मा हू ।
6. परम पारिणामिक, परम भाव स्वरूप परमात्मा हूँ एवं सभी से भिन्न हूँ ।
7. ''जानने योग्य जैसा जाना जाता है, वैसा ही मैं हूँ ।''
8. 'अहम' को मैंने अपने स्वभाव में स्थापित कर लिया है ।
9. ''सोsहम'' वही तो मैं हूँ । अनुभव और एकाग्रता की अपेक्षा स्वरूप की प्राप्ति का मार्ग पूरा हो जाता है ।
10. पूर्ण का आदर करनेवाला सम्पूर्ण हो जाएगा ।
परम पूज्य मुनि श्री 108 हितेन्द्र सागर जी महाराज
1. मुझे वस्तु के अस्तित्व की श्रद्धा क्यों नहीं आती ? ऐसा स्वरूप को समझकर पकड़ ।
2. मेरा भगवान आत्मा मेरे पास सदैव विद्यमान है ।
3. जिन बिम्ब मेरा प्रतिबिम्ब हैं । जिन प्रतिमा जिन सारखी । मेरा ही द्रव्य अरिहन्त जैसा वीतरागी, परमात्मा जैसा है ।
4. भगवान मेरे समक्ष हैं, मुझमें ही हैं । सिर्फ मुझे अपना अन्तर्मुखी द्वार खोलना है ।
5. मैं सुख-शान्ति, आनंद, ज्ञान, पुरुषार्थ स्वरूप चैतन्य आत्मा हू ।
6. परम पारिणामिक, परम भाव स्वरूप परमात्मा हूँ एवं सभी से भिन्न हूँ ।
7. ''जानने योग्य जैसा जाना जाता है, वैसा ही मैं हूँ ।''
8. 'अहम' को मैंने अपने स्वभाव में स्थापित कर लिया है ।
9. ''सोsहम'' वही तो मैं हूँ । अनुभव और एकाग्रता की अपेक्षा स्वरूप की प्राप्ति का मार्ग पूरा हो जाता है ।
10. पूर्ण का आदर करनेवाला सम्पूर्ण हो जाएगा ।
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