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Wednesday, May 3, 2017

Jain philosophy/Akshay Tartiya

                    श्री आदिनाथ जिनेन्द्राय: नमः

               जैन धर्म में अक्षय तृतीया का महत्व:-
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भगवान आदिनाथ मुनि दीक्षा लेने के पश्चात छ: माह के उपवास की प्रतिज्ञा लेकर
ध्यान मग्न हो गये |

व्रत समाप्ति पश्चात वे आहार हेतु निकले किन्तु मुनियोचित आहार विधि का
ज्ञान ना होने के कारण
कोई उन्हें आहार नही दे सका |

इस प्रकार मुनियोचित आहार ना मिलने पर उन्हें एक वर्ष 13 दिन तक
और निराहार रहना पड़ा |

जब भगवान प्रयाग से विहार करते हुए हस्तिनापुर पधारे
तब हस्तिनापुर नरेश सोमप्रभ के छोटे भाई श्रेयांश ने उन्हें अपने महल से देखा
और उन्हें पूर्व जन्म में दिए
आहार दान कि विधि का स्मरण हो आया
और उन्होंने भगवान को नवधा भक्तिपूर्वक पड़गाया और इक्षु रस का शुद्ध आहार दिया |

वह पुण्य दिवस वैशाख शुक्ल तृतीया था | आदि प्रभु को इस सर्व प्रथम आहार दान के कारण हस्तिनापुर को महानता प्राप्त हो गई तथा यह पवित्र दिन अक्षय तृतीया के रुप में एक पर्व के नाम से प्रसिद्ध हो गया |

राजा श्रेयांश को दान के प्रथम प्रवर्तक के रुप में प्रतिष्ठा प्राप्त हुई | संसार में दान देने कि प्रथा इस आहार दान के पश्चात ही प्रचलित हुई |

अक्षय तृतीया महापर्व

आदिम तीर्थंकर प्रभो, आदिनाथ मुनिनाथ
आधी व्याधि अघ मद मिटे,
तुम पद में मम माथ

शरण चरण हैं आपके, तारण तरण जहाज
भव दधि तट तक ले चलो,
करुणाकर जिनराज

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